हनुमान जी की वीरता और भक्ति की अनुपम गाथा 🕉️ ll राम हनुमान कथा 2025 🙏
हनुमान जी की वीरता और भक्ति की अनुपम गाथा 🕉️
हनुमान जी की वीरता और भक्ति की अनुपम गाथा आए सुनते हैं यह रोचक एवं रहस्य भरी कथा ऐसी ही हिंदू धर्म की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे एमएस स्टोरी चैनल को सब्सक्राइब अवश्य करें और कमेंट में जय श्री राम जय बजरंग बली लिखना ना भूले संकट मोचन महाबली हनुमान जी की कथा आरंभ होती है तब जब वे अपने बाल्यकाल में थे हनुमान जी की बाल लीला ऐसी थी कि वे बचपन से ही अत्यंत बलवान चंचल और शक्तिशाली थे वे सदा उछलते कूदते रहते और अपने बल का प्रदर्शन करते रहते पहली चुनौती
एक दिन जब हनुमान जी अपनी क्रीला में मग्न थे तभी आकाश में उगते हुए सूर्य को देखकर उन्होंने उसे एक मीठा फल समझ लिया उनके मन में यह विचार आया वह कितना सुंदर और लाल रंग का फल है मुझे इसे खाने जाना चाहिए वह अपने बाल मन की चंचलता में इतने खो गए कि बिना कुछ सोचे सीधे आकाश की ओर उड़ चले जैसे-जैसे वे ऊपर उठते गए वैसे-वैसे सूर्य भी उनकी ओर बढ़ता गया देवताओं ने यह देखा और आश्चर्य चकित रह गए यह बालक कौन है जो सूर्य को निगलने चला है इंद्रदेव तुरंत अपने
हाथ में वज्र लिए आ गए और बोले हे बालक सूर्य को छूने का प्रयास मत करो नहीं तो तुम्हें रोकने के लिए मुझे वज्र का प्रयोग करना पड़ेगा लेकिन हनुमान जी की जिद तो अधिक थी इंद्र ने अंततः वज्र से प्रहार किया और हनुमान जी गिर पड़े जब वायु देव ने यह देखा तो उन्हें अपने पुत्र पर अन्याय सहन नहीं हुआ और वे क्रोधित हो उठे उन्होंने सारा संसार रोक दिया जिससे चारों दिशाओं में हाहाकार मच गया पिता का प्यार और वरदान ब्रह्मा जी और अन्य देवताओं ने वायु देव को शांत करने का प्रयास किया सभी
देवताओं ने मिलकर हनुमान जी को आशीर्वाद दिए ब्रह्मा जी ने कहा हे वत्स तुम्हें वरदान है कि तुम्हें कोई भी अस्त्र शस्त्र हानि नहीं पहुंचा पाएगा और इंद्र ने कहा तुम्हें मेरे वज्र का भी कोई प्रभाव नहीं होगा सभी देवताओं ने उन्हें शक्ति और साहस का वरदान दिया प्रथम युद्ध हनुमान जी के जीवन का पहला युद्ध तब आया जब राक्षसों ने ऋषियों को तंग करना आरंभ किया हनुमान जी ने सोचा इन राक्षसों को सबक सिखाना चाहिए उन्होंने अपने विशाल रूप को धारण किया और उन राक्षसों के दल पर धावा बोल दिया अरे राक्षसों तुमने ऋषियों को कष्ट देने का साहस कैसे कि हनुमान जी ने एक ही वार में कई राक्षसों को धराशाई कर दिया राक्षस घबरा कर बोले यह बालक है या कोई देवता इसकी शक्ति का कोई पार नहीं है हनुमान जी ने गर्जना करते हुए कहा अब अगर कोई भी निर्दोषों को कष्ट देगा तो उसे मुझसे सामना करना पड़ेगा उनकी इस वीरता के
बाद हनुमान जी को संकट मोचन और महाबली कहा जाने लगा संक्षेप में हनुमान जी का यह पहला युद्ध और देवताओं का आशीर्वाद ही उन्हें भविष्य में राम जी के परम भक्त और महान योद्धा के रूप में स्थापित करता है उनकी निडरता शक्ति और करुणा की यह कहानी हमें यह सिखाती है
कि जब भी कोई संकट आए हमें अपने साहस और भक्ति से उसका सामना करना चाहिए इस तरह संकट मोचन महाबली हनुमान जी की यह कथा साहस निष्ठा और सच्चाई की एक अद्वितीय मिसाल है हनुमान जी की निष्ठा और भक्ति समय बीतता गया और हनुमान जी का साहस और बल निरंतर बढ़ता रहा वे सदैव धर्म
और न्याय के पक्ष में खड़े रहते एक दिन हनुमान जी अपने गुरु सूर्यदेव से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे उन्होंने वेद शास्त्र और विभिन्न अस्त्र शस्त्र की विद्या को बड़े ध्यानपूर्वक सीखा सूर्यदेव ने हनुमान जी की निष्ठा और समर्पण देखकर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा हे वत्स तुम्हारी भक्ति और निष्ठा अद्वितीय है तुम्हारे बल और बुद्धि का कोई सानी नहीं हनुमान जी के हृदय में सदा से ही सेवा और भक्ति का भाव था एक दिन वे सोचने लगे मैं अपने जीवन का उद्देश्य कैसे पूरा कर सकता हूं मुझे किसकी सेवा में अपना सर्वस्व अर्पित करना चाहिए तभी उनकी भेट केशर पर्वत के एक तपस्वी ऋषि से हुई ऋषि ने कहा हे वानर श्रेष्ठ तुम्हारा जीवन एक महान उद्देश्य के लिए है तुम्हें श्रीराम की सेवा में अपना जीवन समर्पित करना है हनुमान जी ने ऋषि के वचनों को मन ही मन स्वीकार किया और कहा हे ऋषिवर मैं प्रभु श्रीराम की से से करने को तत्पर हूं कृपया '
मुझे उनका मार्ग दिखाएं राम और हनुमान का मिलन ऋषि की आज्ञा अनुसार हनुमान जी अपने राजा सुग्रीव के पास पहुंचे सुग्रीव अत्यंत चिंतित और भयभीत थे क्योंकि उनके भाई बाली ने उन्हें राज्य से निष्कासित कर दिया था हनुमान जी ने सुग्रीव को धैर्य बंधाया और कहा राजन आपकी सहायता के लिए कोई महाशक्ति शीघ्र ही आएगी कुछ समय पश्चात सुग्रीव को श्रीराम और लक्ष्मण के
आगमन की सूचना मिली सुग्रीव ने हनुमान जी से कहा हे महाबली आप जाकर देखें कि यह कौन है हनुमान जी ब्राह्मण का वेष धारण कर श्रीराम और लक्ष्मण के समक्ष पहुंचे उन्होंने श्रीराम से पूछा हे तपस्वी आपका यहां आगमन किस उद्देश्य से हुआ है श्री राम ने हनुमान जी को अपने जीवन की सारी कथा सुनाई जैसे ही हनुमान जी ने श्रीराम की वाणी सुनी उनके मन में अपार प्रेम और भक्ति उमर पड़ी उन्होंने श्रीराम के चरण पकड़कर कहा हे प्रभु आपका दास हनुमान आपके चरणों में समर्पित है आप जो भी आज्ञा देंगे मैं उसे पूरा करूंगा सुग्रीव का विश्वास हनुमान जी ने श्रीराम और सुग्रीव का मिलन करवाया सुग्रीव ने श्रीराम को बताया कि कैसे बाली ने उनकी पत्नी और राज्य को उनसे छीन लिया है श्रीराम ने सुग्रीव को आश्वासन दिया तुम्हारा राज्य पुनः तुम्हें मिलेगा हनुमान जी ने सुग्रीव को पूर्ण विश्वास दिलाया कि श्रीराम की सहायता से वे अपने अपने राज्य को पुनः प्राप्त करेंगे उन्होंने कहा राजन श्रीराम की भक्ति और आशीर्वाद के साथ कुछ भी असंभव नहीं है इस प्रकार हनुमान जी ने अपने पहले बड़े यज्ञ में अपने साहस भक्ति और निष्ठा का परिचय दिया उन्होंने ना केवल सुग्रीव के प्रति अपनी वफादारी दिखाए बल्कि श्रीराम के प्रति अपनी भक्ति को भी सिद्ध किया संक्षेप में हनुमान जी का श्रीराम से मिलन और उनकी सेवा का प्रारंभ यह दर्शाता है कि जब भी जीवन में संकट आए सच्चे भक्त को अपने आराध्य की शरण में ही शांति मिलती है उनकी कथा हमें समर्पण निष्ठा और सेवा का महत्व सिखाती है आगे की कथा में हनुमान जी अपने साहस और बुद्धिमत्ता से लंका जाने और सीता माता की खोज करने की यात्रा करेंगे जो उनकी भक्ति और वीरता की एक और अनोखी मिसाल होगी सीता माता की खोज का आरंभ श्रीराम ने सीता माता की खोज के लिए वानर सेना को चारों दिशाओं में भेजने का आदेश दिया हनुमान जी को दक्षिण दिशा में जाने का कार्य सौंपा गया उन्होंने श्रीराम के चरणों में प्रणाम करते हुए कहा प्रभु आपकी कृपा से ही मैं इस कार्य को सफलता पूर्वक संपन्न करूंगा श्रीराम ने हनुमान जी को अपनी अंगूठी देते हुए कहा हे पवन पुत्र यह अंगूठी मेरी
पहचान है इसे माता सीता को दिखाना जिससे उन्हें यह विश्वास हो सके कि तुम मेरे दूत हो हनुमान जी ने श्रीराम का आदेश मानते हुए अपने साथियों के साथ दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान किया रास्ते में कई कठिनाइयां आई लेकिन हनुमान जी ने अपने धैर्य और साहस से सभी का समाधान किया समुद्र पर पुल और जटायु का संदेश वहां पहुंचने पर हनुमान जी को विशाल समुद्र उनके मार्ग में दिखा वे सोच में पड़ गए समुद्र पार कैसे करूं यह तो मेरे लिए भी एक चुनौती है तभी जटायु के भाई संपाती ने उन्हें रोका हनुमान जी को देखकर संपाती ने कहा हे वानर वर मैं जानता हूं कि तुम श्रीराम के दूत हो मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि सीता माता लंका में रावण के बंदी गृह में है हनुमान जी को यह सुनते ही लगा अब मेरी यात्रा का लक्ष्य स्पष्ट हो गया है उन्होंने मन ही मन प्रभु श्रीराम का स्मरण किया और एक विशाल क रूप धारण कर लिया
उन्होंने जोर से गरजते हुए कहा जय श्री राम और एक ही छलांग में समुद्र को पार कर लिया लंका में प्रवेश और विभीषण से भेंट लंका पहुंचकर हनुमान जी ने अपनी शक्ति को संयमित किया और छोटे वानर का रूप धारण किया उन्होंने सोचा मुझे यहां गुप्त रूप से प्रवेश करना होगा वे लंका के चारों ओर घूमते हुए रावण के महल की ओर बढ़े रास्ते में उनकी भेद विभीषण से हुई जो रावण का छोटा भाई और एक धर्मप्रीत था हनुमान जी ने विभीषण से कहा हे विभीषण मैं श्रीराम का दूत हूं और माता सीता की खोज में आया हूं क्या आप मुझे उनका स्थान बता सकते हैं विभीषण ने कहा हे महाबली माता सीता अशोक वर्टिका में है और वे अत्यंत दुख में हैं अशोक वर्टिका में भेंट हनुमान जी अशोक वर्टिका पहुंचे जहां सीता माता को एक वृक्ष के नीचे बैठा देखा वे अत्यंत पीड़ित थी और श्रीराम का स्मरण कर रही थी हनुमान जी ने धीरे से
एक शाखा पर बैठकर श्रीराम की अंगूठी नीचे गिराई जैसे ही सीता माता ने अंगूठी देखी उनके चेहरे पर आश्चर्य और प्रसन्नता का भाव आ गया हनुमान जी ने कहा माता मैं श्रीराम का दूत हूं वे आपकी खोज में व्याकुल है और शीघ्र ही आपको यहां से मुक्त करने आएंगे सीता माता की आंखों में आंसू भर आए और उन्होंने कहा हे महाबली तुमने मेरे लिए बहुत बड़ा उपकार किया है मुझे अब विश्वास हो गया है कि श्रीराम मुझे यहां से मुक्त कराएंगे हनुमान जी ने उन्हें श्रीराम का संदेश सुनाया और धैर्य बनाए
रखने का आग्रह किया लंका में वीरता का प्रदर्शन अब हनुमान जी ने सोचा अब मुझे अपनी शक्ति दिखानी चाहिए जिससे राक्षसों को यह पता चले कि श्रीराम की सेना कितनी शक्तिशाली है उन्होंने अशोक वाटिका को ध्वस्त कर दिया और राक्षसों के सैनिकों को चुनौती दी राक्षसों ने हनुमान जी को बंदी बनाकर रावण के दरबार में पेश किया रावण ने हनुमान जी से क्रोध में कहा तू कौन है जो मेरी लंका में उपद्रव कर रहा है हनुमान जी ने निर्भीकता से उत्तर दिया मैं श्रीराम का दूत हूं और तुम्हें चेता तानी देने आया
हूं कि यदि तुमने माता सीता को नहीं छोड़ा तो तुम्हारा सर्वनाश निश्चित है रावण ने क्रोध में आकर हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया लेकिन हनुमान जी ने उस आग को अपनी शक्ति से लंका की प्रचन ज्वाला में बदल दिया उन्होंने जलती हुई लंका को देखकर कहा यह रावण के अंत का संकेत है लंका से वापसी हनुमान जी वापस श्रीराम के पास लौटे और उन्हें सीता माता का संदेश दिया श्रीराम ने हनुमान जी को गले लगाते हुए कहा हे पवन पुत्र तुमने जो कार्य किया है वह केवल तुम्हारे जैसे वीर ही कर सकते हैं तुम्हारी भक्ति और साहस का मैं ऋणी हूं संक्षेप में इस प्रकार हनुमान जी ने अपनी बुद्धिमत्ता साहस और भक्ति से लंका में जाकर सीता माता की खोज की और श्रीराम को उनका समाचार दिया उनकी यह लीला यह
दर्शाती है कि एक सच्चा भक्त अपने आराध्य के लिए कुछ भी कर सकता है चाहे उसे कितनी ही कठिनाइयों का सामना क्यों ना करना पड़े आगे की कथा में हनुमान जी श्रीराम की सेना का नेतृत्व करते हुए रावण के खिलाफ युद्ध में भाग लेंगे जो उनके साहस और निष्ठा की पराकाष्ठा होगी लंका पर आक्रमण की तैयारी सीता माता का संदेश पाकर श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने का निश्चय किया वानर सेना और राम जी की अगुवाई में समुद्र पर एक विशाल पुल का निर्माण किया गया सब वानर मिलकर पत्थरों पर
श्रीराम लिखते और वे पत्थर पानी में तैरने लगते हनुमान जी का उत्साह और समर्पण देखकर पूरी सेना जोश से भर उठी जब पुल बनकर तैयार हो गया तब श्रीराम ने कहा हे वीर हनुमान अब समय आ गया है
कि हम अपने संकल्प को पूरा करें हनुमान जी ने अपने प्रभु के वचनों को सुना और जोर से गर्जना की जय श्री राम उनका उत्साह देखकर वानर सेना में अपार जोश उम आया और सब एक स्वर में बोल
उठे जय श्री राम लंका में प्रवेश वानर सेना ने पर धावा बोल दिया राक्षसों की विशाल सेना तैयार खड़ी थी हनुमान जी ने अपनी विशालता का परिचय देते हुए एक ही झटके में कई राक्षसों को धराशाई कर दिया वे युद्ध में अपनी गदा चलाते हुए राक्षसों को ऐसा सबक सिखाते कि वे दर से काम पटते हनुमान जी का सामना रावण के पुत्र मेघनाथ से हुआ मेघनाथ जो मायावी शक्तियों का स्वामी था ने कई दिव्य अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग किया हनुमान जी ने अपने साहस और शक्ति से उन सभी अस्त्रों को विफल कर दिया लेकिन मेघनाथ ने जब ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया तो हनुमान जी ने ब्रह्मा जी के सम्मान में उसे स्वीकार कर लिया
और बंधन में बंध गए रावण के दरबार में हनुमान जी को पुनः प्रस्तुत किया गया रावण ने कहा हे वानर क्या तुम्हें अपनी जान की चिंता नहीं हनुमान जी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया हे लंकेश मैं यहां तुम्हें चेतावनी देने आया हूं कि अब भी समय है माता सीता को लौटा दो अन्यथा तुम्हारा सर्वनाश निश्चित है रावण हंसा और बोला तू मुझे धमकी दे रहा है लंका का दहन रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया लेकिन यह रावण की सबसे बड़ी भूल थी हनुमान जी ने अपनी पूंछ की आग से पूरी लंका को
जलाकर राख कर दिया वे आकाश में उड़ते हुए लंका के ऊपर से गरजते हुए बोले जो अधर्म के मार्ग पर चलता है उसका अंत निश्चित है वापसी और युद्ध की घोषणा हनुमान जी श्री राम के पास लौटे और उन्हें लंका के हालात और सीता माता की स्थिति के बारे में विस्तार से बताया श्रीराम ने हनुमान जी के साहस और भक्ति की प्रशंसा की और कहा अब समय आ गया है जब अधर्म का अंत होना चाहिए श्रीराम की सेना ने लंका के द्वार पर पहुंचकर युद्ध का आह्वान किया रावण के दरबार में जब यह सूचना पहुंची तो वह क्रोधित हो उठा और बोला यदि श्रीराम युद्ध चाहते हैं तो उन्हें युद्ध मिलेगा युद्ध का आरंभ युद्ध के पहले दिन दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ हनुमान जी ने अपने पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए कई राक्षस योद्धाओं को
पराजित किया उनकी गदा के वार से राक्षसों की सेना भयभीत हो उठी इस युद्ध के दौरान हनुमान जी ने अद सुग्रीव जामवंत और अन्य वानर योद्धाओं का मनोबल बढ़ाया जब भी किसी वानर योद्धा को कष्ट होता हनुमान जी उसकी सहायता के लिए तुरंत वहां पहुंचते उनकी निद्रा और बल देखकर श्रीराम भी आश्चर्य चकित थे लक्ष्मण का मूर्छित होना और संजीवनी का खोज एक दिन मेघनाथ ने लक्ष्मण पर शक्ति नामक अस्त्र का प्रयोग किया जिससे लक्ष्मण मूर्छित हो गए श्रीराम अत्यंत दुखी हो उठे और बोले
यदि लक्ष्मण को कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगा हनुमान जी ने श्रीराम को सातव ना दी और कहा प्रभु मैं संजीवनी बूटी लेकर शीघ्र लौटूंगा हनुमान जी ने तुरंत आकाश में उड़ान भरी और हिमालय की ओर प्रस्थान किया जब वे पर्वत पर पहुंचे तो वहां अनेक प्रकार की औषधियां थी हनुमान जी सोच में पड़ गए मुझे कौन सी औषधि लेनी चाहिए अंततः उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया और वापस युद्धभूमि में पहुंच गए संजीवनी के प्रभाव से लक्ष्मण स्वस्थ हो उठे श्रीराम ने हनुमान जी को गले लगाते हुए कहा हे पवन पुत्र तुमने मेरे लिए जो किया है वह अमूल्य है रावण का अंतः अब युद्ध अपने अंतिम चरण में पहुंच गया था श्रीराम और रावण का सामना हुआ रावण अपनी पूरी शक्ति और मायावी शक्तियों का प्रयोग कर रहा था लेकिन श्रीराम की भक्ति और धर्म की शक्ति के आगे वह पराजित हो रहा था अंततः रावण का अंत हुआ और लंका में धर्म की विजय
हुई हनुमान जी ने अपने बल बुद्धि और भक्ति से इस महान युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई संक्षेप में हनुमान जी की वीरता निष्ठा और श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति की यह कथा हमें यह सिखा ती है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति चाहे कितनी भी विपत्तियां क्यों ना आए अंत में विजय ही होता है अगला अध्याय लंका विजय के बाद हनुमान जी श्रीराम और सीता माता के साथ अयोध्या लौटते हैं लेकिन हनुमान जी की कथा यही समाप्त नहीं होती क्योंकि वे अपने भक्तों के संकट हरने के लिए सदा सजग रहते हैं
अयोध्या वापसी और राम राज्याभिषेक लंका विजय के बाद श्रीराम ने रावण का राज्य विभीषण को सौंप दिया सभी वानर योद्धाओं और राक्षसों ने श्रीराम की जय जयकार की विभीषण ने श्रीराम और सीता माता को सम्मान पूर्वक विदा किया श्रीराम सीता माता लक्ष्मण और हनुमान जी वानर सेना के साथ अयोध्या लौटने के लिए पुष्पक विमान में सवार हुए अयोध्या पहुंचने पर सभी नगरवासियों में खुशी की लहर दौड़ गई उन्होंने अपने आराध्य श्रीराम का स्वागत दीपों से किया पूरे अयोध्या नगर में दीप मालाएं सजाई गई और हर दिशा में जय श्रीराम के नारी उठे हनुमान जी भी अपने प्रभु के स्वागत में झूम रहे थे उनकी आंखों में
प्रसन्नता और संतोष के आंसू थे श्रीराम के राज्याभिषेक के दिन जब वे राजा के रूप में सिंहासन पर बैठे तो हनुमान जी विनम्रता से उनके चरणों में बैठे थे श्रीराम ने हनुमान जी की ओर देखा और कहा हे पवन पुत्र तुमने मेरे लिए जो किया है उसका मैं ऋण हूं तुम्हारे बिना यह सब असंभव था हनुमान जी ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया प्रभु यह सब आपकी कृपा का ही फल है मैं तो केवल आपका सेवक हूं
हनुमान जी की निस्वार्थ भक्ति राज्याभिषेक के बाद एक दिन श्रीराम दरबार में बैठे थे वे अपने सभी भक्तों और सेवकों को उपहार दे रहे थे सीता माता ने हनुमान जी को अपनी प्रसन्नता स्वरूप एक सुंदर मोती की माला भेंट की हनुमान जी ने उस माला को बड़े ध्यान से देखा और एक-एक मोती को तोड़ने लगे सभी यह देखकर चौक गए और सीता माता ने पूछा हनुमान तुम इस माला को क्यों तोड़ रहे हो हनुमान जी ने सरलता से उत्तर दिया माता मैं देख रहा हूं कि इन मोतियों में श्रीराम का नाम है या नहीं यदि इन मोतियों में
श्रीराम का नाम नहीं है तो यह मेरे किसी काम की नहीं श्रीराम ने मुस्कुराते हुए पूछा हे महाबली क्या तुम्हारे हृदय में भी मेरा वास है हनुमान जी ने तुरंत अपने वक्ष को चीर दिया जिसमें उन्होंने श्रीराम और सीता माता की मूर्तियां दर्शाई सभी य देखकर अभिभूत हो गए और उनकी भक्ति का साक्षात अनुभव किया हनुमान जी का सेवा भाव अयोध्या में सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन हनुमान जी के मन में एक ही इच्छा थी सदैव श्रीराम की सेवा करते रहना एक दिन श्रीराम ने सभा में पूछा हे हनुमान तुम मुझसे क्या चाहते हो हनुमान जी ने अपने नेत्रों में आंसू भरकर कहा प्रभु मैं आपसे कुछ भी नहीं चाहता मेरी एकमात्र इच्छा है कि मैं हमेशा
आपके चरणों की सेवा कर करता रहूं श्रीराम ने आशीर्वाद देते हुए कहा हे हनुमान तुम्हारी भक्ति और सेवा अमर रहेगी तुम सदा मेरे भक्तों के कष्ट हरने के लिए तैयार रहोगे हनुमान जी का अयोध्या में वास जब श्रीराम का यह अवतार समाप्त होने का समय आया तो वे सरयु नदी के तट पर गए सभी भक्तों को इसका आभास हो गया था और वे अत्यंत दुखी थे हनुमान जी भी अपने प्रभु के चरणों में गिर पड़े और बोले प्रभु यदि आप जा रहे हैं तो मुझे भी अपने साथ ले चलिए श्रीराम ने उन्हें स्नेह पूर्वक उठाया और कहा हे हनुमान मेरा यह शरीर छोड़ने के बाद भी मेरी कथा और मेरे भक्तों के लिए तुम्हारी सेवा अनवरत जारी रहेगी जब भी मेरे किसी भक्त को संकट आएगा तुम उसकी रक्षा करने के लिए सदा तत्पर रहोगे हनुमान जी ने सहर्ष यह वरदान स्वीकार किया और श्रीराम के आदेश का पालन करने का वचन दिया हनुमान जी की अमरता हनुमान जी की भक्ति और निष्ठा कारण वे अमर हो गए ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी आज भी इस संसार में विद्यमान है और जहां भी श्रीराम का नाम लिया जाता है वहां वे उपस्थित होते हैं उनके जीवन की यह कथा साहस निष्ठा और सच्चे सेवा भाव की एक अमर मिसाल है संक्षेप में हनुमान जी की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और निस्वार्थ
सेवा का मार्ग हमें भगवान के निकट लाता है चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों ना आए यदि हमारे हृदय में सच्च निष्ठा और सेवा भाव हो तो हम हर संकट को पार कर सकते हैं इस प्रकार संकटमोचन हनुमान जी की कथा का समापन होता है लेकिन उनकी भक्ति और साहस का उदाहरण हमें जीवन के हर संघर्ष में प्रेरणा देता रहेगा हनुमान जी की कथा का मुख्य भाग श्रीराम के साथ ही समाप्त होता है लेकिन उनकी अमरता और अनन्य भक्ति ने उन्हें युगों युगों तक जीवित रखा उनके जीवन में अनेक ऐसी घटनाएं और कथाएं हैं जो हमें प्रेरणा देती हैं आइए हनुमान जी के कुछ और प्रसंगों पर नजर डालते हैं जो उनके सेवा भाव और भक्ति को और भी गहराई से दर्शाते हैं महाभारत में हनुमान जी का योगदान महाभारत के युद्ध के
समय जब अर्जुन युद्धभूमि में अपने रथ के बारे में चिंतित थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उनसे कहा अर्जुन तुम्हारे रथ के ध्वज पर पवन पुत्र हनुमान विराजमान होंगे उनकी उपस्थिति तुम्हारे रथ को अदम्य बल और सुरक्षा प्रदान करेगी हनुमान जी ने अर्जुन के रथ के ध्वज पर स्थित होकर पूरे महाभारत के युद्ध में अर्जुन की रक्षा की उन्होंने अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण को कर्तव्य के मार्ग पर चलते रहने के लिए प्रेरित किया हनुमान जी का यह योगदान उनकी श्रीराम के प्रति भक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा को दर्शाता है हनुमान जी और भीम का मिलन कहते हैं कि एक समय महाबली भीम हिमालय में जा रहे थे अचानक उन्होंने देखा कि
रास्ते में एक वृद्ध वानर लेटा हुआ है भीम ने उससे कहा हे वानर मुझे रास्ता देने के लिए अपनी पुंछ हटाओ वानर ने उत्तर दिया हे भीम मैं वृद्ध हूं अपनी पूंछ खुद हटा नहीं सकता तुम ही इसे हटा दो भीम ने सोचा कि यह तो एक मामूली वानर है और उसने पूंछ को हटाने का प्रयास किया लेकिन वह पूंछ को नहीं हटा सका भीम ने पूरी शक्ति से कोशिश की फिर भी वह पूंछ को हिला नहीं सका भीम को अब समझ में आया कि यह कोई साधारण वानर नहीं हो सकता उसने वानर से क्षमा मांगी और उसकी सच्चाई जानने का
अनुरोध किया तब हनुमान जी ने अपना वास्तविक रूप प्रकट किया और भीम को समझाया कि अहंकार से बड़ा कोई दुश्मन नहीं होता अक्षय भक्ति और प्रसाद का आदान प्रदान कहा जाता है कि एक बार माता सीता ने हनुमान जी को श्रीराम के प्रसाद स्वरूप एक मोती की माला दी हनुमान जी ने माला के हर मोती को ध्यानपूर्वक देखा और उसे तोड़ने लगे श्रीराम ने पूछा हनुमान तुम ऐसा क्यों कर रहे हो हनुमान जी ने उत्तर दिया मैं देख रहा हूं कि इनमें आपका नाम अंकित है या नहीं यदि इनमें आपका नाम नहीं है तो मेरे लिए यह बेकार है यह सुनकर सभी भाव विभोर हो गए हनुमान जी की इस भक्ति ने यह सिखाया कि सच्चे भक्त के लिए भगवान की उपस्थिति हर वस्तु में होती है रामचरित मानस में हनुमान जी की भूमिका महाक तुलसीदास जी ने जब
रामचरित मानस की रचना की तब हनुमान जी ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास जी जब अपनी रचना लिख रहे थे तब हनुमान जी अदृश्य रूप से वहां उपस्थित थे और उन्हें अपनी भक्ति और कृपा का अनुभव करा रहे थे इसी कारण रामचरित मानस की प्रत्येक चौपाई और दोहे में हनुमान जी की भक्ति का प्रताप प्रत्यक्ष दिखाई देता है आधुनिक काल में हनुमान जी की उपस्थिति मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी आज भी इस संसार में विद्यमान है और जहां भी श्रीराम का नाम लिया जाता है वहां वे अवश्य उपस्थित होते हैं उन्हें संकटमोचन का जाता है जो अपने भक्तों के सभी संकट हरने की शक्ति
रखते हैं कई भक्तों का यह विश्वास है कि यदि कोई व्यक्ति सच्चे हृदय से हनुमान चालीसा का पाठ करता है तो हनुमान जी उसकी सभी समस्याओं का समाधान करते हैं उनकी कृपा से कोई भी व्यक्ति असंभव को भी संभव कर सकता है हनुमान जी का संदेश हनुमान जी की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति निस्वार्थ सेवा और अपने आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण ही हमें जीवन के हर संक से उभार सकता है हनुमान जी का जीवन हमें हर परिस्थिति में साहस धैर्य और निष्ठा बनाए रखने की प्रेरणा देता है उनकी कथा का अंत नहीं बल्कि हर युग में हनुमान जी के कृत्य और उपदेश हमें सही मार्ग दिखाते रहेंगे हनुमान जी का
हर भक्त से यही कहना है कि जो भी सच्चे हृदय से मेरी शरण में आता है मैं उसके हर संकट का समाधान करता हूं इस प्रकार हनुमान जी की भक्ति की यह अनंत कथा हमें सिखाती है कि कैसे एक सच्चा भक्त अपने भगवान के प्रति अटूट निष्ठा और प्रेम के साथ जीवन के हर संघर्ष का सामना कर सकता है हनुमान जी के जीवन के अंतिम संदेश और भक्ति का महत्व हनुमान जी की भक्ति और सेवा का उल्लेख अनंत है और हर कथा में एक नया संदेश छुपा हुआ है श्री राम के जीवन से जुड़े हर प्रसंग के बाद भी हनुमान जी के जीवन का उद्देश्य केवल भगवान की सेवा और धर्म की रक्षा रहा कलयुग में हनुमान जी की महत्ता हिंदू धर्म के अनुसार चार युगों में से क युग वह युग है जब अधर्म अन्याय और पाप बढ़ जाते हैं लेकिन हनुमान जी को चिरंजीवी माना गया है जो चारों युगों में जीवित रहते हैं उनका यह चिरंजीवी रूप उन्हें कलयुग में भी अपने भक्तों की रक्षा के लिए सक्षम बनाता है कहा जाता है कि जब भी कोई भक्त सच्चे मन से हनुमान चालीसा का पाठ करता है या हनुमान जी के नाम का स्मरण करता है तब हनुमान जी उसकी पुकार सुनकर उसकी सहायता के लिए तुरंत उपस्थित हो जाते हैं इसलिए उन्हें संकट मोचन कहा गया है हनुमान जी के उपदेश हनुमान जी केवल शक्ति और भक्ति के प्रतीक नहीं है बल्कि उन्होंने कई उपदेश भी दिए जो हमें जीवन जीने का सही मार्ग दिखाते हैं जब तुलसीदास जी ने हनुमान जी से उनकी भक्ति का रहस्य पूछा तो हनुमान जी ने विनम्रता पूर्वक कहा राम काजू कीन है बिनु मोही कहा विश्राम अर्थात जब तक मैं श्रीराम का कार्य नहीं कर लेता मुझे विश्राम नहीं मिलता हनुमान जी के इस उपदेश से यह सीखने को मिलता है कि हमें अपने कार्य और कर्तव्यों के प्रति समर्पित रहना चाहिए और तभी हमें सच्चा आनंद और शांति मिल सकती है हनुमान जी के अनुसार भक्ति केवल एक साधना नहीं है
बल्कि यह जीवन जीने का एक मार्ग है हनुमान जी का आशीर्वाद और भक्तों की कहानियां कई भक्तों की यह मान्यता है कि जब भी वे कठिनाइयों में होते हैं और हनुमान जी का स्मरण करते हैं तब उनकी समस्याएं दूर हो जाती हैं हनुमान जी का आशीर्वाद सदैव उनके भक्तों के साथ रहता है ऐसी कई कहानियां प्रचलित हैं जिनमें भक्तों ने संकट के समय हनुमान जी की उपासना की और उन्हें चमत्कारिक रूप से राहत प्राप्त हुई चाहे वह कठिन है आर्थिक हो शारीरिक हो या मानसिक हनुमान जी अपने भक्तों के लिए हर क्षेत्र में सहायता करते हैं हनुमान जी की भक्ति का प्रतीक हनुमान चालीसा हनुमान चालीसा
एक ऐसा भक्ति गीत है जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा इसमें हनुमान जी के बल बुद्धि और भक्ति का गुणगान किया गया है कहा जाता है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से ना केवल भौतिक समस्याओं का समाधान होता है बल्कि आत्मिक शांति और बल भी प्राप्त होता है हनुमान जी की भक्ति के इस प्रतीक ने भक्तों को कठिन समय में साहस और शक्ति प्रदान की है उनकी उपासना से ना केवल संकट दूर होते हैं बल्कि मन की शांति भी मिलती है अंतिम संदेश हनुमान जी के जीवन की कथा हमें यह सिखाती है कि निष्ठा समर्पण और साहस के साथ हर कठिनाई का सामना किया जा सकता है चाहे कोई कितना भी बलशाली हो उसका मन और आत्मा शुद्ध होनी चाहिए हनुमान जी ने श्री राम के प्रति जो निस्वार्थ भक्ति और सेवा भाव दिखाया वह आज के समय में भी अनुकरणीय है हनुमान जी का अंतिम संदेश यही है कि सच्चे
मन से भगवान का नाम लो धर्म के मार्ग पर चलो और अपने कर्तव्यों का पालन निष्ठा और समर्पण से करो तब हर सं का समाधान अपने आप मिल जाएगा हनुमान जी का आह्वान हर युग में हनुमान जी की महत्ता रही है और कलयुग में भी वे सदैव अपने भक्तों के संकट हरने के लिए तत्पर रहते हैं उनका आहवान यही है कि वे हर उस व्यक्ति की सहायता करेंगे जो सच्चे मन और प्रेम से उनका स्मरण करेगा इस प्रकार हनुमान जी की भक्ति की कथा अंतहीन है और सदैव हमें प्रेरित करती है कि कैसे कठिनाइयों में भी धैर्य साहस और भक्ति बनाए रखें उनके आशीर्वाद से हर भक्त संकट मुक्त और समर्थ बना रह सकता है जय श्री राम जय '
हनुमान हनुमान जी का परम आदर्श और जीवन का अंतिम उद्देश्य हनुमान जी के जीवन और भक्ति का अंत नहीं है बल्कि यह सतत चलने वाला ए आदर्श है उनका जीवन हमें धर्म साहस सेवा और सच्चे प्रेम का संदेश देता है संसार के प्रति हनुमान जी का संदेश हनुमान जी की कथा का समापन उनके जीवन के अंतिम उपदेश से होता है जिसमें उन्होंने अपने ने भक्तों को यह सिखाया कि भगवान की भक्ति और अपने कर्तव्यों का पालन सबसे महत्त्वपूर्ण है उनकी शिक्षा यह है कि जब तक शरीर में प्राण है तब तक अपने कर्तव्यों को निभाते रहो और सदैव सत्य के मार्ग पर चलो कठिनाइयां कितनी भी बड़ी क्यों ना हो भगवान पर भरोसा रखो और उनका स्मरण करो आत्म समर्पण और सेवा की महत्ता हनुमान जी का जीवन हमें यह भी सिखाता है कि
सच्चा आत्म समर्पण और सेवा ही भक्ति का सार है उन्होंने श्रीराम के प्रति जो निष्ठा दिखाई वह हमें यह संदेश देती है कि भक्ति केवल आराधना का विषय नहीं है बल्कि जीवन के हर कर्म और विचार में भगवान का समर्पण हो सच्ची भक्ति वही है जिसमें मन वचन और कर्म का मेल हो हनुमान जी की अमरता का रहस्य हनुमान जी को अमरता का वरदान प्राप्त है यह अमरता केवल उनके शारीरिक जीवन की नहीं बल्कि उनकी भक्ति और सेवा की अमरता का प्रतीक है उनका चिरंजीवी रूप यह दर्शाता है कि जब भी संसार में कोई भक्त सच्चे मन से भगवान का स्मरण करेगा उसकी सहायता के लिए सदैव एक शक्ति उपस्थित रहेगी जो संकट को हरने वाली होगी हनुमान जी के जीवन का अंतिम उद्देश्य हनुमान जी ने अपने जीवन में जो भी
कार्य किया वह केवल अपने प्रभु श्रीराम की सेवा और उनके भक्तों की रक्षा के लिए किया उनका उद्देश्य था अपने आराध्य की कृपा से संसार में धर्म की स्थापना करना और अपने भक्तों के कष्टों को दूर करना इस प्रकार हनुमान जी का जीवन हमें प्रेरणा देता है कि सच्ची भक्ति सेवा और समर्पण ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य होना चाहिए संकट चाहे कितना भी बड़ा हो यदि मन में निष्ठा और भक्ति हो तो कोई भी उसे पार कर सकता है समापन हनुमान जी की भक्ति की अनंत गाथा हनुमान जी की कथा यहां समाप्त नहीं
होती बल्कि उनके भक्तों की भक्ति और विश्वास में सदैव जीवित रहती है उन्होंने अपने भक्तों के लिए जो प्रेम और कर ना दिखाए वह सदैव एक आदर्श रहेगा हर युग में हर युग धर्म के अनुरूप हनुमान जी के भक्तों ने उनकी भक्ति से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सफल बनाया उनके आशीर्वाद से भक्तों ने कठिन परिस्थितियों में भी साहस और धैर्य बनाए रखा हनुमान जी की प्रार्थना आखिर में हनुमान जी के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हुए हर भक्त उनके चरणों में एक विनती करता है हे महाबली हनुमान हमें आपकी भक्ति साहस और निष्ठा का आशीर्वाद दे हमारे मन में सच्ची भक्ति और सेवा का भाव सदैव बना रहे हमारे जीवन के हर संकट को दूर करने के लिए हमें अपनी कृपा प्रदान करें और हमें धर्म के मार्ग पर चलने की शक्ति दें जय श्री राम
जय हनुमान इस प्रकार हनुमान जी की कथा का समापन होता है लेकिन उनके उपदेश उनकी भक्ति और उनका सेवा भाव हमारे जीवन में सदैव मार्गदर्शन करता रहेगा हनुमान जी की महिमा और उनके भक्तों के प्रति उनकी कृपा नंद है और उनकी कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि सच्ची भक्ति और सेवा से हर संकट का समाधान संभव है संकट मोचन हनुमान जी की जय मैं उम्मीद करता हूं सभी भक्त जनों ने यह कथा यहां तक सुनी होगी ऐसी ही हिंदू धर्म की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब अवश्य करें और कमेंट में जय श्री राम जय श्री हनुमान लिखना ना भूले महाबली बजरंग बली की कृपा आप सभी पर सदैव ऐसे ही बरसती रहेगी
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